जय श्री कृष्णा

                                               !जय श्री कृष्णा !
                                       
                                               अध्याय १ 

            गीता की विशिष्ठता 

हम एक महान ग्रन्थ की विचारधारा समाज ने की कोशिश कर रहे है इस ग्रन्थ की महानता के बारे मई कोई शक़ नहीं है ,वैश्विक कार्य के लिए भगवान ने ईश ग्रन्थ को गाया है। तत्वज्ञान जैसी उच्च विचारणा इस ग्रन्थ में देखने को मिलती है ,वेसी दूसरी किसी दूसरी जगह देखने को नहीं मिलती पूर्णता की शिखर तक ले जाना वाला ग्रन्थ है श्री कृष्ण भगवान ने अपने प्रिय पार्थ को जो भी कहा वो हम किस तरीके से समझ सकेंगे ?फिर भी एक उपाशक द्वारा। हृद्धय कातर होती हो तो भी एक अतिरिक्त तुलसीदल भावपूर्ण ह्रदय से इस महान ग्रन्थ पर चढ़ाने में कोई आपत्ति नहीं है 

      गीता का महिमा विशेष है . कम  से कम विश्व की ६० से ७० भाषा में गीता का अनुवाद  हुआ है कुछ धर्मग्रंथो का २५० भाषा में अनुवाद हुआ है पर वो कार्य उसके प्रचारको इ प्रचार करने के लिए किया है गीता का अनुवाद गीता को मानने वालो ने उसके प्रचार के लिए या उसका महत्त्व बढ़ाने के लिए नहीं किया है उल्टा ,गीता प्रेमी समाज गीता के प्रचार के लिए उदासीन रहा है ,लेकिन परदेसी लोग ने गीता विचार की सनातनता देख के आत्यंतिक प्रेम से उसका अनुवाद किया है ,,उस लिए गीता के अनुवाद की कीमत है 

         आज उनकी उदार उदात्त और प्रसस्त विचारो का प्रभाव है ऐसा अमेरिका मानता है ऐशी उदरमतवादिता आई है उसका कारन "इमर्शन "है इमर्शन जीवन के ४८ साल u.s.a. के konkord शहर में बिताये थे इमर्शन thomas karlail को uk में जब मिले तब karlail ने जीवन के सत्य आदर्श से भरे हुए ग्रन्थ गीताग्रंथ उसको उपहार दिया था ,इतिहास ने इस बात की नोध ली है इमर्शन ने गीता की विचारधारा दृढ़ता से स्वीकार की है गीता की असर इमर्शन पे हुई है और इमर्शन के विचारो की असर u.s.a पर देखने को मिलती है 

     गीता के जीवन के सत्य आदर्श की मोहिनी ज कुछ अलग है हमारे देश में १ गवर्नर जनरल के लिए वोरिंग होस्टिंग आया था उसके ऊपर गीतमे कही हुई विचारधारा की इतनी असर हुई है की उसने चार्ल्स विलिकन्स नाम के उसके सहायक को ५ साल काशी में पढ़ने के लिए भेजा था उसके बाद 1785 में वॉरेन होस्टिंग ने ''मरो या मारो "के बारे में चोटी के सिद्धान्त के तत्वज्ञान कहनेवाली गीता का अनुवाद किया अथार्त गीता के प्रचार के लिए अनुवाद किया होता तो उसकी इतनी कीमत ना  होती अगर प्रचार का उद्देश्य होता तो जगत की सभी भाषा में उसका अनुवाद हो गया होता जीवनमूल्यों को पहचान ने वाले इन्शान अलग और प्रचार करने वाले इन्शान अलग। प्रचारको के कार्य के पीछे एक राजकारन  आ जाता है 


 शुरू में इस साहेबो के नाम स्मरण किया ,वो लोग नामस्मरण करने जैसे है। जिसने इर्मसन या कार्लाइल को पढ़ा होगा उनको पता होगा, यह दोनों नमस्कार करने जैसे है। इन लोगो ने गीता पर प्रेम किया इसलिए गीता अच्छी है ,एषा  मेरा कहना नहीं है "साहेब बोलते है वो सबूत। .ऐश मानना वो एक तरह के बौद्धिक दिवालिया है। पर आज बोलते टाइम आप गीता का वाक्य बोलो उससे अच्छा साहेब का वाक्य बोलो। तो तथाकथित शिक्षित लोग आप को समझदार समजे। यह एक प्रकार की बौद्धिक अवनति है। गीतके जीवन सत्यों यूनिवर्शल है। वो कहने के लिए साहेबो का नामस्मरण किया है। कुछ पंथ। कुछ संप्रदाय और कुछ जाती का तिलक करने वालो के लिए गीता है ऐश नहीं है। गीता का केवल भारत में रहने वाले भक्तो और राष्ट्वादी प्रचारको अनुवाद करते तो उसमे बहुत बड़ी बात थी। पर ,यह अनुवाद राजकारणरहित ज्ञान और शांति के पिपासु ऐशे परदेसी पंडितो ने किया है। इसलिए उनका उल्लेख हो रहा है। 
   देशविदेश के राजनीतिज्ञ ,तत्वज्ञ ,आत्मज्ञ ,आत्मानुभूतिवाले ,कर्मरत ज्ञानी और भावभक्ति से भरे हुए इन्शानो ने गीताग्रंथ में जितना तैरना हो इतना तैर सको एषा ,संक्षेप में कहे तो सब कक्षाके लोगो को मान्य हो ऐसा यह ग्रन्थ है। गीताग्रंथ विश्व के सर्जनहार ,अवतार ऐशे भगवान् गोपालकृष्ण ने गाया है। इसलिए समस्त मानवजाति के लिए यह ग्रन्थ बोलने में आया है। गीता ग्रन्थ इतना महान होने के बावजूद उसकी भाषा सीधी ,सरल ,रोचक ,रसदार और प्रासादिक है। गीता को कोई भी अध्याय गायो तो गाते गाते उसकी प्राशादिकता अनुभववा मिलेगी शुरुआत में पहले अध्याय में कौरव और पांडव पक्ष के अग्रणी योध्या ने युद्ध की शुरुआत में शंख फूंके ,उसका वर्णन है फिर भी वो श्लोको गाते समय वाणी की प्राशादिकता अनुभव करने को मिलती है।  इस अध्याय में गीता की सम्पूर्ण पृष्ठभूमि ध्यान में आती है उस समय के राजनीती और अलग अलग लोगो का मानसदर्शन यहाँ पर होता है 
 

        गीता के तत्वो पकड़ने और जीवनप्रेरक है इसमें कोई संदेह नहीं है। साथ साथ गीता की परिस्थिति स्फूर्तिदायक है। गीता का पहला अध्याय परिस्थिति साकार करता है विहवल्ता में से गीता जन्मी है शोक -व्याकुल और शोकविह्वल हो गया अर्जुन और स्नेह्व्याकुल और स्नेहविह्वल हुए श्रीकृष्ण   
का यह संवाद है। इसलिए विभिन्न प्रकार के दुखो से विह्वल बनेले इन्शान को यह संवाद जीवन व्यहवार में बहोत लाभदायी है। 

आसान बही धारा

यह ततज्ञान गाया हुआ होने से इसको "गीता" कहते है। इसमें धर्म, भक्ति और जीवन के सिद्धान्त गए हुए है। इस धर्मो और सिधान्तो को किसने गाया ?षड्गुणायश्रययुक्त भगवान् ने गाया हे। इसलिए श्रीमद भगवद्गीता उसका नाम पड़ा हे। 

   भगवान ने गीता का गान किसीको समजाने के लिए किया हे की ?भगवान् को उनकी विद्या का प्रदशन करना था की ? या फिर भगवान् ने स्वमत का मंडन की परमत का खंडन करना था की ?भगवान् को किसी को मानाने का था की ? किसी को मनाने का प्रश्न आया की वहां बेबसी आयी ज समजो। फिर चाहे बाप बेटे को मनाता हो या पति पत्नी को मनाता हो। वैश्विक मानवजीवन का आधार शिलारूप गीताग्रंथ हो ,तो उसमे किसी को मनाने की बात नहीं हो सकती। गीता में स्वमतखंडन ,परमतखंडन पांडित्य प्रदशॅन जैसी कोई और बात नहीं कही  तो? अहा ज्यादा प्रेम लिए जगदम्बा के स्तन में से दूध पिलाने के लिए रसकर बहेने लगा हे। उसके पीछे कोई उधेश्य ,की प्रयोजन था की नहीं उसकी मुझे जरूर शंका हे। स्तनदायिनी माता के पास से दूध खीच ने की जरुरत भी पड़ी नहीं। ऐसा जो स्तन मिला वो गीता हे और इसमें गीता का महत्व हे। 

    गीता रणमेदान में गायी है। फिर भी कुछ विनोदी  तात्विक दार्शनिक लोगो ने उसको लग्नप्रसंग बोला है। गीता में अन्तमे जिव और भगवन का लग्न ही होता है। गीता प्रेमपत्र हे 
"पार्थ का 'विषाद 'नाम का लड़का और परमात्मा की 'वाणी 'नाम की कन्या वो दोनों विवाहित और उसके फल स्वरुप जो निर्माण हुआ वो गीता। गीता लोकपावनी हे 

कुरुक्षेत्र क्या है ?

       गीता कहा गाने में आयी है ? कुरुक्षेत्र में  गीता गाने में आयी हे। धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे ,,,....... से गीता की शुरूआत हे। कुरु राजा  ने जो जमीन खेड़ी वो जमीन हमारे देश में कुरुक्षेत्र हुआ। उसी जगह परशुराम ने एकवीस बार सत्ता और वित्त से उदाम बनेले क्षत्रियो को कंठस्नान देकर उस जगा को पवित्र की ,और उनकी उदमता निकल दी। इसलिए भारतीय लोगो की दृष्टि से कुरुक्षेत्र धर्मक्षेत्र हे। कुरु राजाने दिलके प्रेमसे वो क्षेत्र खड़ा किया हे कुरुक्षेत्र का यह महत्व हे

 

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